छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी लोकगीतों में लोकजीवन के सामाजिक यथार्थ और जनचेतना प्रसार की भूमिका का विवेचनात्मक अध्ययन

Authors

  • मुकेश चन्द्राकर Author
  • डॉ. अजय कुमार शुक्ल Author

Keywords:

लोकगीत, लोकजीवन, सामाजिक यथार्थ, जनचेतना प्रसार,सांस्कृतिक साम्यता और भिन्नताएँ।

Abstract

छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में आदिवासी-किसान जीवन की कठिनाइयाँ, उत्सव-प्रेम-उल्लास, प्रकृति-संघर्ष और सामाजिक समानता की भावना प्रमुख हैं, जबकि भोजपुरी लोकगीत श्रम, प्रेम, जाति-व्यवस्था और प्रवास की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करते हैं। छत्तीसगढ़ और भोजपुरी लोकगीतों में बहुत सारी समानताएं भी है और भौगोलिक एवं क्षेत्रीय कारणों से कुछ असमानताएं भी हैं किन्तु ये लोकगीत न केवल सामाजिक विसंगतियों का प्रतिबिंब हैं, बल्कि जनजागरण का मजबूत माध्यम भी हैं। जिसका मुख्य स्वर सामाजिक यथार्थ और जनचेतना का प्रभावशाली प्रसार करना है।

Author Biographies

  • मुकेश चन्द्राकर

    शोध विद्यार्थी, कलिंगा विश्वविद्यालय, नया रायपुर (छत्तीसगढ़)

  • डॉ. अजय कुमार शुक्ल

    प्राध्यापक (हिन्दी), कलिंगा विश्वविद्यालय, नया रायपुर (छत्तीसगढ़)

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Published

2025-02-02

Issue

Section

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How to Cite

छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी लोकगीतों में लोकजीवन के सामाजिक यथार्थ और जनचेतना प्रसार की भूमिका का विवेचनात्मक अध्ययन. (2025). Shodh Patra : International Journal of Multidisciplinary Studies, 2(1), 552-558. https://shodhpatra.in/index.php/files/article/view/76

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