विकसित भारत में मानवीय मूल्यों का महत्व और व्यक्तित्व विकास में उनकी भूमिका
Keywords:
विश्वव्यापीकरण, मानवीय मूल्य, मानवतावाद, विकसित भारतAbstract
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के युग में सृजनशीलता, आत्मज्ञान, कल्पना, विश्वास, प्रेम एवं सहानुभूति जैसे भावनात्मक गुणों का निरन्तर हृास हुआ है। व्यापक उपभोक्तावादी संस्कृति तथा भोग विलास से पोषित भौतिकतावादी युग में धन-अर्जन, सत्ता तथा प्रसिद्धि की लालसा ने परम सुखवादी जीवनयापन को प्रोत्साहित किया है। इसका परिणाम मानवीय मूल्यों के विघटन के रूप में सामने आ रहा है। भारत में आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में मानवीय मूल्यों का प्रमुख स्थान रहा है। मूल्य समाज में व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करते हैं साथ ही सही मार्ग की ओर निर्देशित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक ओर मानवीय मूल्य मनुष्यों के मानसिक तनावों व संघर्षों को सुलझाकर आन्तरिक संगति व सम्बद्धता उत्पन्न करते हैं दूसरी ओर आदर्श आयाम की ओर, वैयक्तिक व सामाजिक जीवन को समृद्ध बनाते हैं। महान समाज सुधारकों, नेताओं, प्रशासकों आदि के विचारों एवं उपलब्धियों से मानवीय मूल्यों पर प्रकाश डाला जा सकता है। वर्तमान समय में मानवीय मूल्यों का अत्यधिक महत्व है क्योंकि मूल्यों का निरन्तर विघटन हो रहा है। अधिकतर व्यक्तियों में सकारात्मक के स्थान पर नकारात्मक सोच निर्मित हो रही है। देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने परिवार, समाज एवं शिक्षण संस्थानों से मूल्यों को ग्रहण करें जिससे वह एक आदर्श नागरिक बन सके। मूल्य आधारित शिक्षा पर बल देकर अपने देश के गौरवपूर्ण अतीत के बारे में बताया जा सकता है। मूल्य आधारित वातावरण से तैयार भावी नागरिक विकसित भारत के निर्माण में अपना योगदान देकर विकसित देशों की श्रेणी में पहुँचाने में सक्षम होंगें।