रविदासिया सम्प्रदाय : एक समाजशास्त्रीय विश्लेषणात्मक अध्ययन
Keywords:
रविदासिया धर्म, संत रविदास, सामाजिक न्याय, दलित चेतना, धार्मिक पहचान, जातिवाद, अमृतबाणी, सामाजिक समानता, भक्ति आंदोलन, चमार समुदाय।Abstract
यह शोध पत्र रविदासिया सम्प्रदाय के सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करता है। रविदासिया सम्प्रदाय एक ऐसा धार्मिक-सामाजिक आंदोलन है, जिसकी जड़ें संत रविदास की शिक्षाओं में निहित हैं। संत रविदास ने मध्यकालीन भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक असमानताओं के विरुद्ध संघर्ष किया। उनका संदेश समाज के शोषित वर्गों को न केवल आध्यात्मिक बल प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक चेतना और आत्म-सम्मान का भी बोध कराता है।
यह अध्ययन यह दर्शाता है कि किस प्रकार संत रविदास की शिक्षाओं ने एक व्यापक समुदाय को एकजुट किया और 21वीं सदी में "रविदासिया धर्म" के रूप में एक पृथक धार्मिक पहचान स्थापित की। इस धर्म के अनुयायी मुख्यतः अनुसूचित जातियों से आते हैं, विशेषकर चमार समुदाय से, जो ऐतिहासिक रूप से समाज में हाशिये पर रहे हैं। रविदासिया सम्प्रदाय उनके लिए न केवल भक्ति और ईश्वर-भक्ति का मार्ग है, बल्कि सामाजिक संघर्ष और आत्मसम्मान की लड़ाई का भी प्रतीक है।
शोध में यह भी विश्लेषण किया गया है कि यह धर्म किस प्रकार अपने अनुयायियों को संगठन, शिक्षा, समानता और सामूहिक पहचान की भावना देता है। अमृतबाणी, लंगर सेवा, और सामुदायिक मेलों के माध्यम से इसकी धार्मिक संस्कृति विकसित हुई है।
वर्तमान समय में रविदासिया सम्प्रदाय अनेक सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें धार्मिक पहचान, सामाजिक भेदभाव और राजनीतिक दोहन प्रमुख हैं। यह शोध इन समस्याओं को उजागर कर उनके संभावित समाधानों की ओर संकेत करता है।
इस प्रकार, यह अध्ययन रविदासिया सम्प्रदाय को केवल एक धार्मिक संप्रदाय नहीं, बल्कि एक सामाजिक न्याय और मानवता आधारित आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करता है।